नरेंद्र मोदी की सरकार वर्ष 2014 से ही भारत में “मेक इन इंडिया” पर लगातार काम कर रही है, जिसका लक्ष्य भारत को वैश्विक विनिर्माण उद्योग का केंद्र बनाना है। सरकार की यह योजना धीरे-धीरे फलीभूत होती नज़र आने लगी है। आज भारत के स्मार्टफोन बाजार में लावा, इंटेक्स और माइक्रोमैक्स जैसे घरेलू कंपनियों के साथ-साथ ज़ियामी, ओप्पो, लेनोवो और विवो जैसे चीनी फर्मों के कम लागत वाले उत्पाद पांव पसार रहे हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि चीन एक समय टेक्नोलॉजी और मोबाइल विनिर्माण के क्षेत्र में अग्रणी होता था, जिसके अर्थव्यवस्था की बुनियाद ही कम लागत वाले उत्पाद थे, पर अब उस राह पर भारत अग्रणी होने की दिशा में चल पड़ा है। जी हां, मोबाइल फोन विनिर्माण में भारत इस बार काफी तेजी से और अपेक्षाकृत अधिक स्थापित होने जा रहा है। नतीजतन, भारत अब वैश्विक मोबाइल फोन उद्योग में अग्रणी देश बन जायेगा, क्योंकि विनिर्माण केंद्रों के उभरने से अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी; हमने चीन में इस प्रभाव को पहले भी देखा है, जब फॉक्सकॉन ने झेंग्झौ में भारी उपस्थिति स्थापित की, तो इस पुरे क्षेत्र में संपूर्ण मोबाइल फोन उपकरणों की आपूर्ति श्रृंखला तैयार हो गयी।
हम इस तथ्य को परत दर परत आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। कुछ समय पहले जब सैमसंग ने नोएडा में एक नया मोबाइल फोन विनिर्माण संयंत्र की स्थापना की, जो इस देश का दूसरा सैमसंग का मोबाइल फोन विनिर्माण संयंत्र है और यह भारत के लिए सुखद एहसास का विषय हो सकता है क्योंकि नोएडा का यह संयंत्र दुनिया का सबसे बड़ा संयंत्र बनने के लिए तैयार है, जो प्रति वर्ष 120 मिलियन मोबाइल फोन का उत्पादन करेगा।
इससे पहले, सैमसंग ने चीनी विनिर्माण बाजार में काफी निवेश किया था, लेकिन वहां घरेलू आर्थिक विकास दर धीमा होने और भारत में इसकी प्रबल संभावनाओं को देखते हुए सैमसंग की सामरिक दृष्टि भारत की तरफ बढ़ी है। यही नहीं, ऐप्पल, फॉक्सकॉन और कई अन्य बहुराष्ट्रीय मोबाइल फोन निर्माता कंपनियों ने पिछले कुछ वर्षों में भारत-आधारित विनिर्माण में भी निवेश किया है। पिछले साल, ऐप्पल ने भारत में कुछ आईफोन बनाने शुरू किए थे और आपूर्तिकर्ताओं के विनिर्माण उद्योग को सुविधाजनक बनाने के लिए टैक्स-ब्रेक के बारे में भारत सरकार को अवगत कराया था। इतना ही नहीं, हाल ही में एसर की स्पिन-ऑफ विनिर्माण शाखा विस्ट्रॉन और फॉक्सकॉन ने भी भारत में विनिर्माण शुरू करने के उद्देश्य से भूमि किराए पर लेने के लिए भारत सरकार के साथ समझौता किया है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि चीन के करीब-करीब सभी फोन निर्माता, या तो भारत में विनिर्माण की स्थापना कर चुके हैं, या इस दिशा में भारत सरकार के संपर्क में हैं। आज के दौर में विवो, ओप्पो, जिओमी जैसी कंपनियों को भारत विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार दिखने लगा है। ज़ियोमी का पहले से ही भारत में दो कारखाने हैं और वर्ष 2019 तक एक और विनिर्माण केंद्र शुरु हो जाने की उम्मीद है, जिसकी घोषणा भी हो चुकी है।
विवो का नया 30,000 वर्ग मीटर का विनिर्माण संयंत्र चीन के बाहर सबसे बड़ा संयंत्र है। मोबाइल चिप निर्माता मीडियाटेक जैसे फोन घटक निर्माताओं ने चीन में विनिर्माण कार्यक्रमों को धीमा करने की योजना बना ली है, क्योंकि वे भारत और अन्य दक्षिणपूर्व एशियाई इलाकों में अब निवेश का मन बना चुके हैं। यह सच है कि आज भारत की तुलना में चीन में मोबाइल हैंडसेट विनिर्माण वृद्धि और स्मार्टफोन की बिक्री धीमी है। जबकि एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में स्मार्टफोन उद्द्योग प्रवेश के साथ अभी भी केवल 30 प्रतिशत ही है, अभी यहां के बाज़ार में आधी रफ्तार भी नहीं आई है। वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार के मेक इन इंडिया के संकल्प और उस अनुरूप भारत में मिल रहे माहौल के स्वर्णिम मौके को कोई भी कंपनी यूं ही गंवाना नहीं चाहती।
भारत में मेक इन इंडिया की सफलता और निवेश के इस प्रतिस्पर्धी माहौल की एक वजह यह भी है कि भारत सरकार ने विभिन्न प्रकार की नीतियों के माध्यम से स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया है, जिसमें हाल ही में भारत सरकार ने पॉप्युलेटिड प्रिंटेड सर्किट बोर्ड्स (पीसीबी), कैमरा मॉड्यूल और कनेक्टर्स के आयात पर 10% ड्यूटी लगाई है, जिससे बाहर से आयातित फोन और महंगें होंगें और मेड इन इंडिया सेलफोन को बढ़ावा मिलेगा। ज़ाहिर है, बाज़ार के लिए सबसे महत्वपूर्ण है मुनाफा। किराया, उपकरण और श्रम लागत चीन की तुलना में भारत में आम तौर पर कम होती है, जिसका अर्थ है कि निर्माता फोन को और अधिक सुविधाजनक माहौल में और कम लागत में उत्पादन कर सकते हैं। वहीं चीन में स्मार्टफोन के लिए स्थानीय मांग धीमी होने के साथ ही बढ़ती मानकों के चलते चीनी फोन निर्माता खुद को ऐसी स्थिति में देख रहे हैं जहां उन्हें फोन को और अधिक सस्ते बनाने की जरूरत पड़ सकती है, जबकि उनकी सभी लागतें पहले से दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। चीन में इन्हीं संकटों से जूझते हुए और एकमात्र भारत में मौजूदा अनुकूल दौर को देखते हुए मोबाइल विनिर्माण कंपनियों ने चीन से ध्यान हटाने का मन बना लिया है।
चीन में मोबाइल फोन का निर्माण न होना पड़ोसी देश के लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है। दरअसल, चीन का विनिर्माण उद्योग देश की आर्थिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और भारत की तरह चीन एक आबादी वाला देश है। विनिर्माण उद्योग द्वारा प्रदान की गई स्थिरता के बिना चीन की अर्थव्यवस्था में भारी पूंजी प्रवाह की कमी चीन के सामने संकट देने वाला कारण हो सकता है।
हम इस सच से भी इनकार नहीं कर सकते कि भारत में कुशल मजदूरों की तुलनात्मक कमी है, लेकिन भारत में चीनी फोन निर्माताओं के इस लगातार प्रवाह से देश में कुशल श्रमिक भी आएंगे, वहीं सरकार की स्किल इंडिया से तैयार हो रहे दक्ष कामगारों को और प्रशिक्षित होने का मौका मिलेगा, जिससे पूरे भारतीय मोबाइल फोन उद्योग के विकास में और तेजी आएगी। यकीकन इस लेख के माध्यम से दुनिया के तमाम उद्योगपतियों तथा अन्य देशों में रह रहे भारतीय प्रवासियों को एक संवाद ज़रूर जाता है कि भारत में अब निवेश का अनुकूल माहौल तैयार हो चुका है, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना की थी। आज हिन्दुस्तान में ऐसा माहौल पनप रहा है, जहां कंपनियां चीन को छोड़कर यहां आने को विवश हैं, तो आप क्यों नहीं ?
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