10 जनवरी हमारे दादाजी स्वर्गीय कामेश्वर प्रसाद सिंह जी की पुण्यतिथी है। आज के ही दिन वर्ष 2007 में लखीसराय जिला स्थित हमारे पैतृक गाँव अमरपुर में दादाजी ने अपना शरीर त्यागा था।
दादाजी पूर्ण रुपेन किसान थे, कर्म में 100% विश्वास करने वाले, भले वो खुद किसान थे पर अपने बच्चों के पढ़ाई को लेकर बहुत ही महत्वाकांक्षी। वो बच्चों के पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए अपनी 20 बीघा जमीन के अलावा, हमारे क्षेत्र के बड़े जमींदार अमरेन्द्र सिंह की भी जमीन बंटाई करते थे, इस कारण से जाती-बिरादरी के कुछ लोग उनका मज़ाक भी उड़ाते थे, कि खुद भूमिहार होके दूसरे का जमीन बंटाई करते हो, पर इनसब बातों का उनपर कोई असर नहीं था, वो अपने धुन के व्यक्ति थे। कभी गाँव में लड़ाई- झगड़ा भी हो, तो वो डर कर ही सही मुक़ाबला करते थे और अपने बच्चों को इससे दूर रखते थे की कहीं उसके पढ़ाई में बाधा न हो जाय। हमेशा बच्चों से ये कहना कि 'अरे बाबू, पढ़ो, पढ़लके काम देतो बेटा'। उनके बातचीत करने का अपना अंदाज था, कुछ तकिया कलाम जो वो अक्सर बोलते थे, जैसे: "फिर फजुल बात", "दो दाना" आदि।
उन्होनें अपने मेहनत से बड़े बेटे मदन मोहन सिंह को बीसीसीएल में ओवरसियर और दुसरे बेटे सिद्धेश्वर सिंह जो मेरे पिताजी थे को टीएनबी कॉलेज से एम.ए. और पीएचडी करवा कर प्रोफ़ेसर बनाया।
दादाजी अपने वयस्क अवस्था में ही विदुर हो गए थे, पर बच्चों के लालन-पालन और पढ़ाई को ध्यान रख कर उन्होने दूसरी शादी नहीं की, जो उस समय आम बात थी।
उन्होनें अपने मेहनत से बड़े बेटे मदन मोहन सिंह को बीसीसीएल में ओवरसियर और दुसरे बेटे सिद्धेश्वर सिंह जो मेरे पिताजी थे को टीएनबी कॉलेज से एम.ए. और पीएचडी करवा कर प्रोफ़ेसर बनाया।
दादाजी अपने वयस्क अवस्था में ही विदुर हो गए थे, पर बच्चों के लालन-पालन और पढ़ाई को ध्यान रख कर उन्होने दूसरी शादी नहीं की, जो उस समय आम बात थी।
ऐसे तो ग्राम राजनीति से बिलकुल दूर अपने कर्म में रंगे पर थोड़ा बहुत वामपंथ से लगाव था, हमारे क्षेत्र के एक बड़े वामपंथी नेता कार्यानन्द शर्मा जी से काफी प्रभावित थे, उनके आने पर वो भावातुर हो जाते थे, कार्यानन्द शर्मा जी के जिंदा रहने के बाद के कुछ सालों तक भी वो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को ही वोते देते रहे, बाद में कांग्रेस पार्टी और अंतिम वोट वो भाजपा के लिए किए थे, 1998 व 1999 में, अटल जी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए और उसके बाद भी भाजपा को ही वोट दिए।
उनके त्याग और कठिन परिश्रम का परिणाम ही है कि हम सब भाई-बहन आज बड़े शहरों में अपने सपने सँजोने में लगे हैं।
आज दादाजी को ह्रदय से श्रद्धांजली॥
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