मनोहर पर्रिकर का नाता भारत के गोवा राज्य से था और इनका जन्म इस राज्य के मापुसा गांव में साल 1955 में हुआ था । वहीं इस राज्य के लोयोला हाई स्कूल से उन्होंने अपनी शिक्षा हासिल की थी। अपनी 12 वीं की पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने मुंबई में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में दाखिला लिया था और यहां से उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी। पर्रिकर अपने स्कूलों के दिनों से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गए थे। अपनी पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने आरएसएस की युवा शाखा के लिए भी काम करना शुरू कर दिया था।
सादगी के लिए चर्चा में रहने वाले। बेटे की शादी में जहां तमाम मेहमान शानदार सूट-बूट से लैस थे, पर्रिकर हाफ शर्ट (जो कि उनकी पहचान बन चुकी थी), क्रीज वाली साधारण पैंट और सैंडिल पहने सबकी आवभगत करने में जुटे थे। आप उन्हें गोवा की सड़कों पर स्कूटर चलाते और बिना सिक्यॉरिटी के साधारण से रेस्ट्रॉन्ट में चाय पीते भी देख सकते थे।
63 वर्ष तक मनोहर पर्रीकर सोलह से अठारह घंटे काम करते थे। गोवा के मुख्यमंत्री रहते समय मुख्यमंत्री कार्यालय के कर्मचारियों को साँस लेने की भी फुर्सत नहीं मिलती थी।
एक बार पर्रीकर अपने सचिव के साथ रात बारह बजे तक काम कर रहे थे। जाते समय सचिव ने पूछा, “सर, यदि कल थोड़ी देर से आऊँ तो चलेगा क्या?”, पर्रीकर ने कहा, “हाँ ठीक है, थोड़ी देर चलेगी, सुबह साढ़े छः बजे तक आ ही जाना”॥ सचिव महोदय ने सोचा कि वही सबसे पहले पहुँचेंगे, लेकिन जब अगले दिन सुबह साढ़े छः बजे वे बड़ी शान से दफ्तर पहुँचे तो चौकीदार ने बताया कि पर्रीकर साहब तो सवा पाँच बजे ही आ कर ऑफिस में जमे हैं और फाइलें निपटा रहे हैं ।
फिल्म फेस्टिवल 2004 के उद्घाटन समारोह में आए मेहमान ये देखकर हैरान रह गए कि पसीने से लथपथ पर्रिकर पुलिस वालों के साथ आयोजन स्थल के बाहर ट्रैफिक कंट्रोल में जुटे थे। 2012 में खुले मैदान में तीसरी बार शपथ लेने के बाद पर्रिकर ने हर उस आदमी से हाथ मिलाया, जो उन्हें बधाई देने के लिए स्टेज के पास आया। पिछले चुनाव से पहले गोवा के लोगों ने उन्हें 15 दिन तक लगातार रोज 18 से 20 घंटे तक जनसंपर्क करते देखा।
बेहद अनुशासित और सख्त प्रशासक कहे जाने वाले पर्रिकर को मार्च 2012 में पर्यटन मंत्री मातनही सलदन्हा के निधन पर फूट-फूट कर रोते देखा गया। 2005 में जब कुछ विधायकों की खरीद-फरोख्त से पर्रिकर की सरकार डिगा दी गई, मातनही उनके साथ चट्टान की तरह खड़े रहे थे। जब मातनही बीमार पड़े, तो पर्रिकर लगातार उनके बेड के सिहराने बैठे रहे। जब डॅाक्टरों ने उन्हें घर जाकर आराम करने के लिए कहा तो जवाब था, मैं उस व्यक्ति को कैसे छोड़कर चला जाऊं, जो इतने सालों तक साए की तरह मेरे साथ बना रहा।
नियमों के पक्के पर मानवीय भी। साप्ताहिक जनता दरबार में एक महिला बेटे को लेकर पहुंची और उसके लिए सरकारी लैपटॅाप मांगा। मौजूद अधिकारी ने बताया कि ये लड़का उस सरकारी योजना में नहीं आ पाएगा। बहरहाल, पर्रिकर को याद आ गया कि वे अपने जनसंपर्क अभियान के दौरान इस महिला से मिले थे और उसे योजना के बारे में बताया था। उन्होंने तत्काल उस लड़के को नया लैपटॅाप दिलाने की व्यवस्था की। इसका भुगतान उन्होंने अपनी जेब से किया।
पर्रिकर जी हमेशा इकॅानमी क्लास में विमान यात्रा करते थे। उन्हें आम लोगों की तरह अपना सामान लिए यात्रियों की लाइन में खड़े और बोर्डिंग बस में सवार होते देखा जा सकता था। टेलीफोन पर पर्सनल बातचीत का भुगतान जेब से करते थे। टैक्सी लेने या पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने में कभी नहीं झिझकते। पत्नी के निधन के बाद दोनों बेटों के लिए मां की जिम्मेदारी भी उन्होंने बखूबी निभाई थी।
अलग-अलग तरीकों से मनोहर पर्रीकर को रिश्वत देने की कोशिशें भी हुईं, लेकिन उनका कठोर व्यक्तित्त्व और स्पष्ट वक्ता व्यवहार के कारण उद्योगपति इसमें सफल नहीं हो पाते थे और पर्रीकर के साथ जनता थी, इसलिए उन्हें कभी झुकने की जरूरत भी महसूस नहीं हुई॥
एक बार पर्रीकर के छोटे पुत्र को ह्रदय संबंधी तकलीफ हुई। डॉक्टरों के अनुसार जान बचाने के लिए तत्काल मुम्बई ले जाना आवश्यक था। उस समय गोवा का एक उद्योगपति उन्हें विमान से मुम्बई ले गया।
चूँकि पर्रीकर के बेटे को स्ट्रेचर पर ले जाना था, इसलिए विमान की छह सीटें हटा कर जगह बनाई गई और उसका पैसा भी उस उद्योगपति ने ही भरा। पर्रीकर के बेटे की जान बच गई। उस उद्योगपति के मांडवी नदी में अनेक कैसीनो हैं और उसमें उसने अवैध निर्माण कर रखे थे। बेटे की इस घटना से पहले ही पर्रीकर ने उसके अवैध निर्माण तोड़ने के आदेश जारी किए हुए थे।
उस उद्योगपति ने सोचा कि उसने पर्रीकर के बेटे की जान बचाई है, इस लिए शायद पर्रीकर वह आदेश रद्द कर देंगे। कांग्रेस को भी इस बात की भनक लग गई और वह मौका ताड़ने लगी, कि शायद अब पर्रीकर जाल में फंसें। लेकिन हुआ उल्टा ही पर्रीकर ने उस उद्योगपति से स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि एक पिता होने के नाते मैं आपका आजन्म आभारी रहूँगा, परन्तु एक मुख्यमंत्री के रूप में अपना निर्णय नहीं बदलूँगा। उसी शाम उन्होंने उस उद्योगपति के सभी अवैध निर्माण कार्य गिरवा दिए और विमान की छः सीटों का पैसा उसके खाते में पहुँचा दिया।
पढ़ने में भले ही यह सब फ़िल्मी टाईप का लगता हो, परन्तु जो लोग पर्रीकर को नज़दीक से जानते थे, उन्हें पता है कि पर्रीकर के ऐसे कई कार्य मशहूर हैं। चूँकि भारत की मीडिया गुडगाँव और नोएडा की अधिकतम सीमा तक ही सीमित रहती है, इसलिए पर्रीकर के बारे में यह बातें अधिक लोग जानते नहीं हैं।
ऐसे अनमोल रतन की परख करके नरेंद्र मोदी नामक पारखी ने उन्हें एकदम सटीक भूमिका सौंपी है, वह है रक्षा मंत्रालय॥
पिछले चालीस वर्षों में दलाली और भ्रष्टाचार (अथवा एंटनी के कार्यकाल में अकार्यकुशलता एवं देरी से लिए जाने वाले निर्णयों) के लिए सर्वाधिक बदनाम हो चुके इस मंत्रालय के लिए मनोहर पर्रीकर जैसा व्यक्ति ही चाहिए था।
यह देश का सौभाग्य ही था कि पर्रीकर जैसे क्षमतावान व्यक्ति के सुरक्षित हाथों में रक्षा मंत्रालय की कमान थी।
जिस समय पर्रीकर को शपथविधी के लिए दिल्ली आमंत्रित किया गया था, उस समय एक “सत्कार अधिकारी” नियुक्त किया गया। जब अधिकारी ने पर्रीकर से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, “आपको एयरपोर्ट पर आने की जरूरत नहीं, मैं खुद आ जाऊँगा”।
जब होटल के सामने ऑटो रिक्शा से सादे पैंट-शर्ट में “रक्षामंत्री” को उतरते देखा तो दिल्ली की लग्ज़री लाईफ में रहने का आदी वह अधिकारी भौचक्का रह गया ।
दोस्तों मुझे गर्व है ऐसे महान व्यक्तियों पर और मोदीजी की परख पर।
तो क्यों न हम सब मिल कर अपने मित्रों, देश के शुभचिंतकों और देश के सच्चे देशभक्तों को ये सीना 56 इंच कर देने वाली इस प्रेरणा दायक जानकारी से अवगत कराएँ !!!
सादगी भरें जीवन को शत-शत नमन🙏🏻🙏🏻
भगवान उनकी आत्मा को शांती🙏🏻🙏🏻
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